हम इस सवाल का तफ़सील से जांच करेंगे , हजरे अस्वद का काबा से ग़ाइब हो जाने को इस्तेमाल करते हुए (318 अन्नो हिजरी में) ताकि इस मामले की मिसाल पेश कर सके ।
वह लोग जो इंकार करते नबी हज़रत ईसा अल मसीह सलीब पर मारे गए वह आम तोर से सूरा -ए- निसा 157 केए हवाला देते हैं ।
और उनके यह कहने की वजह से कि हमने मरियम के बेटे ईसा (स.) ख़ुदा के रसूल को क़त्ल कर डाला हालाँकि न तो उन लोगों ने उसे क़त्ल ही किया न सूली ही दी उनके लिए (एक दूसरा शख़्स ईसा) से मुशाबेह कर दिया गया और जो लोग इस बारे में इख़्तेलाफ़ करते हैं यक़ीनन वह लोग (उसके हालत) की तरफ़ से धोखे में (आ पड़े) हैं उनको उस (वाकि़ये) की ख़बर ही नहीं मगर फ़क़्त अटकल के पीछे (पड़े) हैं और ईसा को उन लोगों ने यक़ीनन क़त्ल नहीं किया।
सूरए निसा 4:157
क्या ईसा अल मसीह मारे गए थे ?
इस बात पर ग़ौर करें कि यह आयत यह नहीं कहती ईसा अल मसीह नहीं मरे थे । बल्कि यह कहती है कि ‘यहूदियों ने उनको नहीं मारा …’ सोइन दोनों बयानों में फ़रक़ पाया जाता है । इंजील शरीफ़ बयान करती है कि यहूदियों ने नबी को गिरफ़्तार किया और काइफ़ा जो सरदार काहिन था उसने नबी से स्वालात किए थे । मगर:
28 और वे यीशु को काइफा के पास से किले को ले गए और भोर का समय था, परन्तु वे आप किले के भीतर न गए ताकि अशुद्ध न हों परन्तु फसह खा सकें।
यूहनना 18:28
पिलातुस उन दिनों रोम का हाकिम था । रोम की सरकार के मातहत रहते हुए, यहूदियों को कोई इख़तियार नहीं था कि वह किसी को हलाक करे । फिर पिलातुस ने नबी को रोमी सिपाहियों के हवाले कर दिया ।
16 तब उस ने उसे उन के हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए॥
यूहनना 19:16
सो यह रोमी सरकार थी और रोमी सिपाही थे जिन्हों ने नबी को सलीब दी थी – न कि यहूदियों ने । यहूदियों के सरदारों पर नबी के शागिर्दों का इल्ज़ाम था कि
13 इब्राहीम और इसहाक और याकूब के परमेश्वर, हमारे बाप दादों के परमेश्वर ने अपने सेवक यीशु की महिमा की, जिसे तुम ने पकड़वा दिया, और जब पीलातुस ने उसे छोड़ देने का विचार किया, तब तुम ने उसके साम्हने उसका इन्कार किया।
आमाल 3:13
याहूदियों ने नबी को रोमियों के हवाले किया और उनहों ने उनको सलीब दी । उन के सलीब पर मरने के बाद , उन के जिस्म को एक क़बर में रखा गया
41 उस स्थान पर जहां यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक बारी थी; और उस बारी में एक नई कब्र थी; जिस में कभी कोई न रखा गया था।
यूहनना 19:41-42
42 सो यहूदियों की तैयारी के दिन के कारण, उन्होंने यीशु को उसी में रखा, क्योंकि वह कब्र निकट थी॥
सूरा अन निसा 157 बयान करता है कि यहोदियों ने ईसा अल मसीह को सलीब नहीं दी । यह सच है । रोमयों ने दी थी ।
सूरा अल मरयम और नबी की मौत
सूरा मरयम साफ़ करता है कि ईसा अल मसीह मरे थे कि नहीं ।
और (खु़दा की तरफ़ से) जिस दिन मैं पैदा हुआ हूँ और जिस दिन मरूँगा मुझ पर सलाम है और जिस दिन (दोबारा) जि़न्दा उठा कर खड़ा किया जाऊँगा । ये है कि मरियम के बेटे ईसा का सच्चा (सच्चा) कि़स्सा जिसमें ये लोग (ख़्वाहमख़्वाह) शक किया करते हैं।
सूरा मरयम 19:33-34
यह साफ़ बयान करता है कि ईसा अल मसीह ने अपनी पेश-ए- नज़र के सबब से अपने आने वाली मौत की बाबत बोला जिस तरह से इंजील बयान करती है ।
मसीह के ‘इवज़ में यहूदा इसकरयूत के मारे जाने’ का नज़रिया
ग़लत फ़हमियों से बहुत ज़ियादा फैला हुआ यह नज़रिया कि यहूदा इसकरयूत की शक्ल ईसा अल मसीह जैसी तब्दील हो गई । फिर यहूदियों ने यहूदा इसकरयूत को गिरफ़्तार किया (जो अब ईसा जैसा दिखता था), रोमियों ने यहूदा को सलीब दी (जो अभी भी ईसा के मुशाबह था), और आखिरे कार यहूदा दफ़न हुआ था (जो अभी भी ईसा जैसा दिख रहा था) । इस नज़रिये में ईसा अल मसीह बग़ैर मरे बराहे रास्त आसमान पर गए । हालांकि न तो क़ुरान शरीफ़ में और न इंजील शरीफ़ में कहीं भी इस तरह के बयानात को इतमाम तक पहुंचाया गया है, मगर इस ग़लत फ़हमी को जान बूझ कर फैलाया गया है ।
ईसा अल मसीह तारीख़ी क़लमबंद में
ग़ैर मज़हबी तारीख़ के कई एक हवालजात ईसा अल मसीह और उनकी मौत का बयान करते हैं। आइये हम उन में से दो पर ग़ौर करें । रोमी तारीख़दान टेसिटुस ने यह बयान करते हुए हवाला दिया कि किस तरह रोमी सल्तनत के नीरो बादशाह ने नबी हज़रत ईसा अल मसीह के पहले शागिरदों को 65 ईस्वी में बहुत बीई दरदी से सताया था । टेसिटुस ने लिखा :
‘नीरो ने उन लोगों को इंतिहाई शिद्दत से सताते हुए सज़ा दी जो मसीही कहलाते थे जो उन के जुर्म के लिए नफ़रत किए जाते थे । खिरिस्तुस नाम बानी को पोनतुस पिलातुस के ज़रिये मरवा दिया गया था जो तिबरियुस के इलाक़े में यहूदिया का हाकिम था : मगर एक वक़्त के लिए (थोड़े अरसे के लिए) इस तबाहकुन बातिल अक़ीदे को जो दबा दिया गया था उसको फिर से तोड़ दिया गया , न सिर्फ यहूदिया के वसीले से जहां ग़लती शुरू हुई थी बल्कि रॉम के शहर के वसीले से भी ‘
टेसिटुस अननल्स XV.44
टेसिटुस तसदीक़ करता है कि ईसा अल मसीह :
- 1) एक तारीख़ी शख़्स था;
- 2) पोनतुस पिलातुस के ज़रिये हलाक किया गया था;
- 3) उसके शागिरदों ने नबी हज़रत ईसा अल मसीह की मौत के बाद यहूदिया (येरूशलेम) में अपनी तहरीक शुरू की;
- 4) 65 ईस्वी में (नीरो के ज़माने में) ईसा के शागिरदों ने अपनी मनादी को यहूदिया से शुरू करके रोम तक ले गये तब रोमी सल्तनत ने एहसास किया कि इस को रोका जाना चाहिए ।
जोसेफुस एक यहूदी, रोमी सिपाहियों का रहनुमा और तारीख़दान जो पहली सदी में यहूदी तारीख़ लिखा करता था । ऐसा करते हुए उस ने ईसा अल मसीह की ज़िंदगी को इन लफ़्ज़ों में बयान किया कि :
‘इस ज़माने में एक दनिशमंद शख़्स है … येसू । … वह अच्छा, और … नेक है । और बहुत से
लोग यहूदियों में से और दीगर क़ौमों में से उसके शागिर्द हो चुके हैं । पिलातुस को मजबूर किया
गया कि उसको सज़ावार टहराए और मसलूब करे कि वह हलाक हो । और जो उसके शागिर्द बन
चुके थे उनहों ने अपनी शागिरदगी को आख़री दम तक नहीं छोड़ा । उनहों ने इतला दी कि
उसकी मस्लूबियत के तीन दिन बाद वह उन पर ज़ाहिर हुआ था और वह ज़िंदा था ।
जोसेफुस॰ 90 ईस्वी एन्टीकुइटीस XVIII, 33
जोसेफुस तसदीक़ करता है कि :
- 1) ईसा अल मसीह का वजूद था,
- 2) वह एक मज़हबी उस्ताद था,
- 3) पिलातुस जेओ रोम का गवर्नर था उसने उसे मरवाया,
- 4) उसके शागिरदों ने उसके मरने के फ़ौरन बाद उसके ज़िंदा होने की मनादी की।
इन तारीखी बयानात से लगता है कि नबी की मौत जानी पहचानी थी , बिना बहस वाला वाक़िया था , उसके मुरदों में से जी उठने के साथ उसके शागिरदों के ज़रिये तमाम रोमी सल्तनत में मनादी की गई ।
बाइबल से – तारीक़ी गोशा –ए- गुमनामी
यहाँ यह बताया गया है कि बाइबल में किस तरह आमाल की किताब उन तमाम वाक़ियात को कलमबंद करती है कि जब शागिरदों ने येरूशलेम में मन्दिर के फाटक के सामने खड़े होकर ईसा अल मसीह के जी उठने की गवाही दी और इसकी मनादी भी की ।
ब वे लोगों से यह कह रहे थे, तो याजक और मन्दिर के सरदार और सदूकी उन पर चढ़ आए।
आमाल 4:1-17
2 क्योंकि वे बहुत क्रोधित हुए कि वे लोगों को सिखाते थे और यीशु का उदाहरण दे देकर मरे हुओं के जी उठने का प्रचार करते थे।
3 और उन्होंने उन्हें पकड़कर दूसरे दिन तक हवालात में रखा क्योंकि सन्धया हो गई थी।
4 परन्तु वचन के सुनने वालों में से बहुतों ने विश्वास किया, और उन की गिनती पांच हजार पुरूषों के लगभग हो गई॥
5 दूसरे दिन ऐसा हुआ कि उन के सरदार और पुरिनये और शास्त्री।
6 और महायाजक हन्ना और कैफा और यूहन्ना और सिकन्दर और जितने महायाजक के घराने के थे, सब यरूशलेम में इकट्ठे हुए।
7 और उन्हें बीच में खड़ा करके पूछने लगे, कि तुम ने यह काम किस सामर्थ से और किस नाम से किया है?
8 तब पतरस ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर उन से कहा।
9 हे लोगों के सरदारों और पुरनियों, इस दुर्बल मनुष्य के साथ जो भलाई की गई है, यदि आज हम से उसके विषय में पूछ पाछ की जाती है, कि वह क्योंकर अच्छा हुआ।
10 तो तुम सब और सारे इस्त्राएली लोग जान लें कि यीशु मसीह नासरी के नाम से जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, और परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया, यह मनुष्य तुम्हारे साम्हने भला चंगा खड़ा है।
11 यह वही पत्थर है जिसे तुम राजमिस्त्रियों ने तुच्छ जाना और वह कोने के सिरे का पत्थर हो गया।
12 और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें॥
13 जब उन्होंने पतरस और यूहन्ना का हियाव देखा, ओर यह जाना कि ये अनपढ़ और साधारण मनुष्य हैं, तो अचम्भा किया; फिर उन को पहचाना, कि ये यीशु के साथ रहे हैं।
14 और उस मनुष्य को जो अच्छा हुआ था, उन के साथ खड़े देखकर, वे विरोध में कुछ न कह सके।
15 परन्तु उन्हें सभा के बाहर जाने की आज्ञा देकर, वे आपस में विचार करने लगे,
16 कि हम इन मनुष्यों के साथ क्या करें? क्योंकि यरूशलेम के सब रहने वालों पर प्रगट है, कि इन के द्वारा एक प्रसिद्ध चिन्ह दिखाया गया है; और हम उसका इन्कार नहीं कर सकते।
17 परन्तु इसलिये कि यह बात लोगों में और अधिक फैल न जाए, हम उन्हें धमकाएं, कि वे इस नाम से फिर किसी मनुष्य से बातें न करें।
17 तब महायाजक और उसके सब साथी जो सदूकियों के पंथ के थे, डाह से भर कर उठे।
आमाल 5:17-41
18 और प्रेरितों को पकड़कर बन्दीगृह में बन्द कर दिया।
19 परन्तु रात को प्रभु के एक स्वर्गदूत ने बन्दीगृह के द्वार खोलकर उन्हें बाहर लाकर कहा।
20 कि जाओ, मन्दिर में खड़े होकर, इस जीवन की सब बातें लोगों को सुनाओ।
21 वे यह सुनकर भोर होते ही मन्दिर में जाकर उपदेश देने लगे: परन्तु महायाजक और उसके साथियों ने आकर महासभा को और इस्त्राएलियों के सब पुरनियों को इकट्ठे किया, और बन्दीगृह में कहला भेजा कि उन्हें लाएं।
22 परन्तु प्यादों ने वहां पहुंचकर उन्हें बन्दीगृह में न पाया, और लौटकर संदेश दिया।
23 कि हम ने बन्दीगृह को बड़ी चौकसी से बन्द किया हुआ, और पहरे वालों को बाहर द्वारों पर खड़े हुए पाया; परन्तु जब खोला, तो भीतर कोई न मिला।
24 जब मन्दिर के सरदार और महायाजकों ने ये बातें सुनीं, तो उन के विषय में भारी चिन्ता में पड़ गए कि यह क्या हुआ चाहता है?
25 इतने में किसी ने आकर उन्हें बताया, कि देखो, जिन्हें तुम ने बन्दीगृह में बन्द रखा था, वे मनुष्य मन्दिर में खड़े हुए लोगों को उपदेश दे रहे हैं।
26 तब सरदार, प्यादों के साथ जाकर, उन्हें ले आया, परन्तु बरबस नहीं, क्योंकि वे लोगों से डरते थे, कि हमें पत्थरवाह न करें।
27 उन्होंने उन्हें फिर लाकर महासभा के साम्हने खड़ा कर दिया और महायाजक ने उन से पूछा।
28 क्या हम ने तुम्हें चिताकर आज्ञा न दी थी, कि तुम इस नाम से उपदेश न करना? तौभी देखो, तुम ने सारे यरूशलेम को अपने उपदेश से भर दिया है और उस व्यक्ति का लोहू हमारी गर्दन पर लाना चाहते हो।
29 तब पतरस और, और प्रेरितों ने उत्तर दिया, कि मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।
30 हमारे बाप दादों के परमेश्वर ने यीशु को जिलाया, जिसे तुम ने क्रूस पर लटका कर मार डाला था।
31 उसी को परमेश्वर ने प्रभु और उद्धारक ठहराकर, अपने दाहिने हाथ से सर्वोच्च कर दिया, कि वह इस्त्राएलियों को मन फिराव की शक्ति और पापों की क्षमा प्रदान करे।
32 और हम इन बातों के गवाह हैं, और पवित्र आत्मा भी, जिसे परमेश्वर ने उन्हें दिया है, जो उस की आज्ञा मानते हैं॥
33 यह सुनकर वे जल गए, और उन्हें मार डालना चाहा।
34 परन्तु गमलीएल नाम एक फरीसी ने जो व्यवस्थापक और सब लोगों में माननीय था, न्यायालय में खड़े होकर प्रेरितों को थोड़ी देर के लिये बाहर कर देने की आज्ञा दी।
35 तब उस ने कहा, हे इस्त्राएलियों, जो कुछ इन मनुष्यों से किया चाहते हो, सोच समझ के करना।
36 क्योंकि इन दिनों से पहले यियूदास यह कहता हुआ उठा, कि मैं भी कुछ हूं; और कोई चार सौ मनुष्य उसके साथ हो लिये, परन्तु वह मारा गया; और जितने लोग उसे मानते थे, सब तित्तर बित्तर हुए और मिट गए।
37 उसके बाद नाम लिखाई के दिनों में यहूदा गलीली उठा, और कुछ लोग अपनी ओर कर लिये: वह भी नाश हो गया, और जितने लागे उसे मानते थे, सब तित्तर बित्तर हो गए।
38 इसलिये अब मैं तुम से कहता हूं, इन मनुष्यों से दूर ही रहो और उन से कुछ काम न रखो; क्योंकि यदि यह धर्म या काम मनुष्यों की ओर से हो तब तो मिट जाएगा।
39 परन्तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे; कहीं ऐसा न हो, कि तुम परमेश्वर से भी लड़ने वाले ठहरो।
40 तब उन्होंने उस की बात मान ली; और प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना।
41 वे इस बात से आनन्दित होकर महासभा के साम्हने से चले गए, कि हम उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे।
इस बात पर ग़ौर करें कि किस तरह यहूदी रहनुमाओं ने रसूलों के पैग़ाम को रोकने की बहुत ज़ियादा कोशिशें कीं । जिस तरह कि मौजूदा सरकारें जो नई तहरीकों से डरती हैं और लोगों को जेल में डालती हैं इसी तरह उस ज़माने के यहूदी रहनुमाओं ने भी ईसा अल मसीह के कुछ शागिरदों को मनादी करने से रोकने के लिए धम्की दी गई , गिरफ़्तार किया गया , मारा पीटा गया , क़ैद में डाला गया और आखिरे कार उन्हें मौत कि नींद सुला दिया गया । इन शागिरदों ने यरुशलेम में अपने पैग़ाम की मनादी की – उसी शहर में जहां कुछ ही हफ्तों पहले ईसा अल मसीह के नाम से ज़ाहिर हुए एक शख्स को सारे आम हलाक करके उसको दफ़न कर दिया गया था । मगर कौन हलाक हुआ था ? एक नबी? या यहूदा जिसको उसके जैसा बना दिया गया था ?
आइये दूसरी सूरतों पर ग़ौर करें और देखें कि क्या हल निकलता है ।
ईसा अल मसीह का जिस्म और क़बर
क़बर को लेकर सिर्फ़ दो ही इंतख़ाब हैं । या तो क़बर ख़ाली था या अभी भी उसमें एक लाश रखी हुई थी जो नबी के जैसी दिखती थी । इसमें कोई दो राय नहीं है ।
आइये हम इस नज़रिये को फ़र्ज़ करते हैं कि यहूदा को नबी की शक्ल जैसी बना दी गई थी, और उसको मसीह के मक़ाम पर सलीब दे दी गई थी, और फिर उसका जिस्म जो (नबी के मुशाबह थी) क़बर में रख दी गई थी । अब दूसरे वाक़ियात की बाबत सोचें जो तारीख़ में वाक़े हुईं जिन्हें हम जानते हैं । जोसेफुस, टेसितुस और आमाल की किताब हम से कहते हैं कि शागिरदों ने येरूशलेम में मनादी के अपने पैग़ाम शुरू कर दिये और यहूदी इख़तियार वालों ने शागिरदों की मुख़ालफ़त में सख्त कारवाई की जब उनहों ने मस्लूबियत के कुछ ही दिनों बाद मनादी करना शुरू कर दिया था मगर (यहूदा जो नबी जैसा लगता था) – जबकि हम इस नज़रिये को फ़र्ज़ कर रहे हैं)। मगर यह नज़रिया कबूल करता है कि यहूदा मरा पड़ा था । इस नज़रिये में लाश क़बर में पड़ी रही (मगर अभी भी वह बदला हुआ नबी की शक्ल का लगता था) — शागिर्द, रोमी सरकार, टेसितुस, जोसेफुस – यहाँ तक कि – हर कोई सोचेगा कि वह नबी कि लाश थी मगर वह हक़ीक़त में यहूदा की मुर्दा लाश थी (जो नबी की शक्ल का था)
इस से यह सवाल उठता है कि येरूशलेम में रोमी सरकार और यहूदी रहनुमाओं को संजीदा फैसला लेने की ज़रूरत थी कि इस मुर्दा लाश के मुरदों में से जी उठने की कहानी को फैलने से रोका जाए जो अभी भी क़बर में पड़ी थी इसके साथ साथ नबी के मुरदों में से जी उठने की बाबत शागिरदों का खुले आम पैगाम देना ऐसा क्यूँ हो रहा था ? अगर यहूदा का जिस्म (जो ईसा अल मसीह जैसा दिख रहा था) जो अभी भी क़ब्र में रखा हुआ होगा तो यह इख्तियार वालों के लिए एक मामूली बात थी कि उसे हर एक को दिखाए और इस् तरह शागिर्दों को झुटलाए (जिन्हों ने कहा कि मसीह जी उठा है) बिना क़ैद करने के, और बिना सताव के आखिरे कार उन्हें शहीदी मौत दे देते । यही सबब है कि उनहों ने ऐसा नहीं किया क्यूंकि वहाँ पर दिखाने के लिए कोई मुर्दा लाश नहीं था – – और क़बर बिलकुल से खाली पड़ा हुआ था ।
अल हजर –ए- अस्वद, काबा और मिसाल बतोर मक्का मदीना की मस्जिदें
930 में चर्च ऑफ इंग्लैंड (318 अनो हिजरी) हजरे अस्वद की चोरी होरी हो गई थी और मक्का में काबा से हटा दिया गया था एक शीतती जमाअत के ज़रिये । उस ज़माने में यह जमाअत अबसिड सल्तनत के खिलाफ़ थी । उनके काबा लौट आने से पहले यह उनके कब्ज़े में रहा । हजर अस्वद भी किसी की मातहती से चूक सकता है ।
उस तरह की एक हालत का तसव्वुर करें जहां एक जमाअत मकका के एक बड़ी मस्जिद (अल -मस्जिदुल हराम) में खड़े होकर भीड़ के सामने सरे आम मनादी करता हो कि अब हजरे अस्वद काबा के मशरिक़ि कोने पर मौजूद नहीं है । उनका यह पैगाम इतना क़ायल कर देने वाला है कि मस्जिद में आने आने वाले हाजी यक़ीन करने लगते हैं कि हजरे अस्वद अब हाथ से गया – इन दो मुक़द्दस मस्जिदों के मुहाफ़िज़ (ख़ादिमुल हरामैन अस – सरीफ़ाइन) कैसे इस तरह के पैग़ाम का मुक़ाबला कर सकते थे ? अगर पैग़ाम झूटा था और हजरे अस्वद काबा में अपनी बेहतर हालत में मौजूद है तो मुहाफ़िज़ों को चाहिए था कि इस पैग़ाम को रोक दे ताकि सरे आम यह बताने के लिए कि हजरे अस्वद काबा में अभी भी अपनी मुक़रररा मक़ाम पर वैसे ही मौजूद है जैसे सदियों से रहता चला आ रहा है । तो फिर यह ख़्याल बहुत जल्द बे –एतबार साबित होता । मक्का में हजरे अस्वद का मस्जिद से क़रीब होना इसको मुमकिन करता है । इसके बर खिलाफ़ अगर मुहाफ़िज़ इस ख़्याल को झूटा साबित करने के लिए हजरे अस्वद को न दिखा पाए तो इस से यह ज़ाहिर होता है कि हक़ीक़त में हजरे अस्वद हाथ से निकाल चुका है जिस तरह 318 अनो हिजरी में हाथ से निकल गया था ।
किसी तरह अगर यह जमाअत मदीना के मस्जिद (अल-मस्जिद अन-नबवी) में है यह ख़बर देते हुए कि हजरे अस्वद मक्का में काबा से (450 किलो मिटर दूर) हटा दिया गया है तो फिर दो मुक़द्दस मस्जिदों के मुहाफ़िज़ों के लिए अपनी कहानी को गलत साबित करना और मुश्किल पेश आती जबकि उन्हें मदीना के लोगों को यह बताना मुश्किल होजाता कि हजरे अस्वद बहुत दूर है ।
किसी मुतबररुक चीज़ की बाबत बहस की नज़दीकी झूटा साबित करने में आसान बना देती है या तसदीक़ करना उसकी बाबत दावा पेश करता है जबकि वह जाँचे जाने के क़रीब है ।
यहूदी रहनुमाओं ने मसीह के मुरदों में से जी उठने के पैग़ाम की मुख़ाल्फ़त की थी मगर एक जिस्म के साथ झुटलाया नहीं था ।
यह तरीक़ा येरूशलेम में यहूदा/ईसा के मुरदा लाश पर नाफ़िज़ होता है । क़बर जहां यहूदा की लाश नुमायां है (जो ईसा जैसा लगता है) वह मंदिर से कुछ ही मिटर दूरी पर पड़ी थी जहां ईसा अल मसीह के शागिर्द भीड़ से मुख़ातब होकर चिल्ला रहे थे नबी ईसा मुरदों में से ज़िंदा हो गए हैं । यहूदी रहनुमाओं के लिए क़बर में यहूदा की लाश को (जो ईसा जैसी दिखती थी) दिखाते हुए यूं ही उनके जी उठने के पैग़ाम पर यक़ीन न करना आसान हो सकता था । यह हक़ीक़त है कि जी उठने का पैग़ाम (जो एक लाश के साथ ग़लत साबित किया जाता है वह अभी भी क़ब्र में है) वह क़ब्र के पास ही शुरू हुआ, जहां हर कोई सबूत देख सकता था । जबकि यहूदी रहनुमाओं ने एक मुरदा लाश को दिखाने के ज़रिये पैग़ाम को नहीं झुटलाया बल्कि वहाँ कोई लाश दिखाने के लिए नहीं थी ।
हज़ारों लोग येरूशलेम में जी उठने के पैग़ाम पर ईमान ले आए
उन दिनों येरूशलेम में ईसा अल मसीह के जिस्मानी तोर से ज़िंदा होजाने पर हज़ारों लोग ईमान लाकर तब्दील हुए (मसीहियत कबूल की) । पतरस जिस भीड़ से मुख़ातब था और वह जो उसकी सुन रहे थे अगर आप उन में से एक होते ताज्जुब करते हुए कि अगर उसका पैग़ाम सच था, क्या आप के पास कम अज़ कम इतना वक़्त नहीं था कि दोपहर के खाने के वक़्त लेकर क़ब्र पर जाते और अपने यक़ीन के लिए देखते कि वहाँ पर अभी भी कोई लाश थी कि नहीं । अगर यहूदा की लाश (जो नबी ईसा अल मसीह जैसी दिखती थी) क़ब्र में पड़ी रहती तो कोई भी रसूलों के पैग़ाम पर ईमान नहीं लाता । मगर तारीख़ बयान करती है कि येरूशलेम से शुरू करते हुए शागिरदों ने हज़ारों लोगों को अपनी तरफ़ कर लिया । जो कि उस लाश के साथ मुमकिन रहा था होगा जो नबी के जैसा लग रहा था जो अभी भी येरूशलेम के आस पास ही था । यहूदा की लाश क़ब्र में पड़ा रहना बे सूद या खिलाफ़ -ए- अक़ल की तरफ़ ले जाता है । इसमें कोई समझदारी नहीं है ।
यहूदा की लाश के नज़रिये को ख़ाली क़ब्र नहीं समझा सकता ।
यहूदा के इस नज़रिये के साथ परेशानी यह है कि उसको ईसा अल मसीह की शक्ल में तब्दील किया जाना और फिर मसलूब किया जाना और उसकी क़ब्र में दफ़नाया जाना, क्या वह एक घेरी हुई क़ब्र की जगह के साथ ख़त्म होती है । मगर सिर्फ़ ख़ाली क़ब्र ही शागिरदों के लिए दूसरों को समझाने का एक ज़रिया था कि वहाँ से अपनी मनादी या गवाही को शुरू करने के क़ाबिल थे सिर्फ़ कुछ हफ़तों बाद पेनतिकुस्त के मोक़े पर, जो नबी के मुरदों में से जी उठने की बुनयाद पर जोकि उसी शहर में हलाक होने की सूरत में एक तहरीक थी ।
सिरफ़ दो इंतिख़ाब थे, एक यहूदा की लाश के साथ जो नबी के जैसा लगता था, जो क़ब्र में पड़ा हुआ था, और दूसरा नबी हज़रत ईसा अल मसीह का मुरदों मे से जी उठना एक खाली क़ब्र के साथ । जबकि यहूदा की लाश का क़ब्र में पड़ा रहना खिलाफ़-ए-अक़ल की तरफ़ ले जाता है, फिर ईसा अल मसीह का रोमी लोगों के हाथों मारा जाना और क़ब्र से जी उठना जिस तरह इंजील में साफ़ बयान किया गया है, यह हमको जिंदगी का इनाम पेश कर रहा है ।
आगे इस सवाल की खोज करते हुए तलाश करने वाला कममिंग सननी लिटरेचर की नज़रे सानी पेश करता है जिस का तरजुमा क्लेरिक्स और दीगर उलमा ने किया है ।